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Loksabha Election 2024: कैसरगंज लोकसभा सीट के दंगल में किसकी होगी जीत? जानें समीकरण

Kaiserganj Loksabha Seat Details: भाजपा ने बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटकर उनके छोटे बेटे करण भूषण सिंह पर दांव लगाया है। जबकि सपा ने भगत राम मिश्रा को चुनावी रण में उतारा है।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 6 May 2024 10:24 AM GMT (Updated on: 16 May 2024 8:49 AM GMT)
Kaiserganj Loksabha Seat Details
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Kaiserganj Loksabha Seat Details

Lok Sabha Election 2024: देश की राजधानी दिल्ली से 649.7 किमी की दूरी पर स्थित कैसरगंज लोकसभा सीट इस चुनाव में चर्चा का केंद्र बना हुई है। यहां से वर्तमान सांसद बृजभूषण शरण सिंह पिछले साल से लगातार सुर्खियों में हैं। देश की कई नामचीन महिला पहलवानों ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया है। इसके चलते भाजपा ने बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काटकर उनके छोटे बेटे करण भूषण सिंह पर दांव लगाया है। जबकि सपा ने श्रावस्ती के पूर्व भाजपा सांसद दद्दन मिश्रा के बड़े भाई भगत राम मिश्रा को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने नरेंद्र पांडेय को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल रही है।

अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो यहां चुनावी परिणाम एकतरफा देखने को मिला था। भाजपा के बृजभूषण शरण सिंह ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे चंद्रदेव राम यादव को 2,61,601 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह को 5,81,358 और चंद्रदेव राम यादव को 3,19,757 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस की स्थिति यहां पर काफी कमजोर रही और विनय कुमार पांडेय को महज 37,132 वोट पर ही संतोष करना पड़ा था। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान समाजवादी बृजभूषण पाला बदलकर भाजपा के टिकट चुनावी अखाड़े में उतरे और सपा के उम्मीदवार विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह को महज 78,218 वोट से हराकर यह सीट भाजपा के खाते में डाल दिया। इस चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह को 3,81,500 और विनोद कुमार उर्फ पंडित सिंह को 3,03,282 वोट मिले थे। जबकि बसपा के कृष्ण कुमार ओझा को 1,46,726 और कांग्रेस के मुकेश श्रीवास्तव उर्फ ज्ञानेन्द्र प्रताप को 57,401 वोट मिले थे।


Kaiserganj Vidhan Sabha Chunav 2022




Kaiserganj Loksabha Chunav 2014 Details



यहां जानें कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र के बारे में (Kaiserganj Loksabha Seat Details in Hindi)

  • कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 57 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन गोंडा जिले के कटरा, करनैलगंज व तरबगंज और बहराइच जिले के पयागपुर व कैसरगंज विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • कैसरगंज लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और 1 पर सपा का कब्जा है।
  • यहां कुल 18,05,946 मतदाता हैं। जिनमें से 8,37,343 पुरुष और 9,68,534 महिला मतदाता हैं।
  • कैसरगंज लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,82,323 यानी 54.39 प्रतिशत मतदान हुआ था।

कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास (Kaiserganj Loksabha Seat Political History)

यूपी के गोंडा और बहराइच के विधानसभा क्षेत्रों को मिला कर कैसरगंज लोकसभा सीट का सियासी भूगोल तैयार होता है। यह वही बहराइच है, जहां के शौक बहराइची ने लिखा है कि ‘देखते हैं जब कभी ईमान में नुकसान शैख, औने-पौने बेच डाला करते हैं ईमान शैख।’ चुनाव दर चुनाव यहां सियासतदानों के पाला बदल का खेल भी कुछ ऐसा ही है। कैसरगंज की सियासी तासीर दूसरी लोकसभा सीटों से कुछ मायनों में अलग रही है। आजादी के पहले ढाई दशक के चुनावों में यूपी की अमूमन हर सीट पर कांग्रेस का दबदबा दिखता था। लेकिन कैसरगंज में कांग्रेस के पांव हमेशा डगमगाए। पहले चुनाव में यह क्षेत्र गोंडा डिस्ट्रिक्ट वेस्ट का हिस्सा था, जिसमें हिंदू महासभा की शकुंतला नायर को जीत मिली। जब 1957 में कैसरगंज लोकसभा सीट अस्तित्व में आया तो कांग्रेस के भगवानदीन मिश्र अपने निर्दल प्रतिद्वंद्वी को हराकर जीत दर्ज की। हालांकि, वह अपनी जीत बरकरार नहीं रख सके। 1959 में नेहरू की समाजवादी नीतियों के विरोध में सी. राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी बनाई। इस पर जमींदारों व पूंजीपतियों के हितैषी होने का ठप्पा भी लगा। लेकिन, कैसरगंज ने इस तोहमत को नकारते हुए 1962 में कांग्रेस को चुनाव से बाहर कर स्वतंत्र पार्टी की बसंत कुंवरी को 62 प्रतिशत वोट देकर जिताया। हालांकि, वह भी राजपरिवार से ही जुड़ी थीं।

कैसरगंज लोकसभा सीट पर 1967 का चुनाव रहा दिलचस्प

कैसरगंज लोकसभा सीट पर 1967 के चुनाव में जनसंघ ने कैसरगंज से शकुंतला नायर को उम्मीदवार बनाया। वहीं, बगल की बहराइच सीट से उनके पति केके नायर ने भी जनसंघ से पर्चा भरा। ICS अधिकारी रहे नायर अयोध्या के कलेक्टर रह चुके थे। 1949 में जब अयोध्या में विवादित स्थल पर मूर्तियां मिलीं, तब उनकी ही तैनाती थी। तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू ने परिसर से मूर्तियां हटाने का आदेश दिया था। लेकिन नायर ने मानने से इनकार कर दिया। बाद में उन्होंने सिविल सेवा छोड़ दी। अयोध्या का पड़ोसी जिला नायर की इस अदा पर रीझ गया। पति और पत्नी दोनों को ही जीत मिली। 1971 में कांग्रेस ने उसे 1962 में हराने वाली बसंत कुंवरी को अपना चेहरा बनाया। लेकिन नजदीकी मुकाबले में शकुंतला जीत दोहराने में सफल रहीं। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कैसरगंज का मिजाज भी प्रदेश की बाकी सीटों जैसा ही रहा। इंदिरा विरोधी लहर में जनता पार्टी के रुद्रसेन चौधरी ने कांग्रेस को पनपने नहीं दिया। 23 साल बाद 1980 में कैसरगंज में कांग्रेस का वनवास खत्म किया राणा वीर सिंह ने की। रुद्रसेन तीसरे पर पहुंच गए। 1984 में भी कांग्रेस को जीत मिली। लेकिन उसके बाद उसके लिए फिर सूखा शुरू हो गया। 1977 में जनता पार्टी से जीते रूद्र सेन चौधरी ने 1989 में जनसंघ के नए संस्करण भाजपा से पर्चा भरा और कमल खिला दिया। लेकिन 1991 के चुनाव में लक्ष्मीनारायण मणि त्रिपाठी भाजपा के टिकट पर सांसद बने।

कैसरगंज लोकसभा सीट पर 1996 से 2009 तक रहा बेनी प्रसाद वर्मा का कब्जा

मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई। कुर्मियों के नेता के तौर पर अपनी जमीन बना रहे बेनी प्रसाद वर्मा भी इसका हिस्सा बने। 1996 में उन्होंने सपा के टिकट पर कैसरगंज में दावेदारी की। बेनी 1984 में लोकदल से भी यहां से लड़े थे, लेकिन इंदिरा की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर में डूब गए थे। इस बार वह नए समीकरणों के साथ थे। कैसरगंज की दो विधानसभा सीटें दरियाबाद और रामनगर बाराबंकी जिले की थीं, जहां से बेनी बाबू आते थे। बेनी ने कैसरगंज से जीत का चौका लगाया। 2004 में उनकी राह को रोकने के लिए भाजपा ने मुस्लिम चेहरे के तौर पर बहराइच के निवासी आरिफ मोहम्मद खान पर दांव लगाया। लेकिन 12,660 वोटों से बेनी फिर जीत गए। 2007 में बेनी की मुलायम से खटक गई। उन्होंने अलग पार्टी बना ली। जमीन पर यह प्रयोग बेअसर रहा और बेनी कांग्रेस में चले गए। 2008 में हुए परिसीमन के बाद कैसरगंज का सियासी भूगोल बदल गया। बाराबंकी की दो विधानसभा सीटों की जगह गोंडा की विधानसभा सीटों ने ली। इस बदले समीकरण में बेनी ने सपा के साथ कैसरगंज की सीट भी छोड़ दी। सपा को नए चेहरे की तलाश थी। 2004 में बलरामपुर से भाजपा से जीते ब्रजभूषण सिंह न्यूक्लियर डील के मसले पर संसद में मुलायम के साथ खड़े हो गए थे। मुलायम ने उन्हें 2009 के चुनाव में कैसरगंज से अपना उम्मीदवार बना दिया और पांचवीं बार भी साइकल दौड़ा दी।

कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण (Kaiserganj Loksabha Seat Caste Equation)

कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां कुछ इलाके क्षत्रिय बहुल हैं। जबकि गोंडा वाला हिस्सा ब्राह्मण बहुल माना जाता है। कहा जाता है कि क्षत्रिय और ब्राहमणों के वोट एकमुश्त पड़ना मुश्किल है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक 2009 के पहले कुर्मी बहुल होने की वजह से यहां बेनी प्रसाद वर्मा का दबदबा रहा । लेकिन नए परिसीमन ने जातिगत समीकरणों को काफी हद तक बदल दिया। इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाताओं की भी भूमिका अहम मानी जाती है। इसके अलावा दलित 18 फीसदी, यादव 12 फीसदी, निषाद 9 फीसदी, 7 फीसदी कुर्मी मतदाता हैं।

कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद (Kaiserganj MP List in Hindi)

  • हिंदू महासभा से शकुंतला नायर 1952 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
  • कांग्रेस से भगवानदीन मिश्र 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • स्वतंत्र पार्टी से बसंत कुंवरी 1962 में लोकसभा उपचुनाव में सांसद चुनी गईं।
  • भारतीय जनसंघ से शकुंतला नायर 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
  • जनता पार्टी से रूद्र सेन चौधरी 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राणा वीर सिंह 1980 और 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से रूद्र सेन चौधरी 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से लक्ष्मीनारायण मणि त्रिपाठी 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से बेनी प्रसाद वर्मा 1996, 1998, 1999, 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से बृज भूषण शरण सिंह 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से बृज भूषण शरण सिंह 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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