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Loksabha Election 2024: ताज नगरी आगरा लोकसभा सीट पर भाजपा के रथ को रोक पाएंगे सपा-बसपा?

Loksabha Election 2024 Agra Seats Details: लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने सत्यपाल सिंह बघेल पर दूसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने सुरेश चंद्र कर्दम और बसपा ने पूजा अमरोही को चुनावी रण में उतारा है। यहां कुल 11 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहा हैं।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 24 April 2024 7:28 AM GMT
Loksabha Election 2024: ताज नगरी आगरा लोकसभा सीट पर भाजपा के रथ को रोक पाएंगे सपा-बसपा?
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Loksabha Election 2024: यूपी का आगरा घूमने और खान-पान तक के लिए बहुत मशहूर है। जो भी पर्यटक यहां आते हैं, पेठे की मिठास और दालमोठ का स्वाद साथ लेकर ही जाते हैं, लेकिन सबसे खास बात यह है कि मोहब्बत की निशानी कहे जाने वाले ताजमहल और उसके किस्से। हर कोई एक बार ताज का दीदार जरूर करना चाहता है। मुगल शहंशाह की इस निशानी को लेकर सियासत भी खूब होती रही है, लेकिन यहां के लोग सियासतदानों पर 'मुहब्बत' लुटाने में पीछे नहीं रहे। जनता को जिससे 'मुहब्बत' हो गई तो फिर बार-बार उसके सिर पर ‘ताज’ सजा दिया। एक ही नेता को दो बार, तीन बार और पांच बार तक यहां के लोगों ने लोकसभा भेजा है। अलग-अलग दलों के हर वर्ग के खांटी नेताओं से लेकर बॉलीवुड स्‍टार तक यहां से नुमाइंदगी कर चुके हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा ने सत्यपाल सिंह बघेल पर दूसरी बार दांव लगाया है। जबकि सपा ने सुरेश चंद्र कर्दम और बसपा ने पूजा अमरोही को चुनावी रण में उतारा है। यहां कुल 11 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहा हैं। सभी उम्मीदवारों की नजर यहां के मुस्लिम और दलित वोटबैंक पर है। क्योंकि कभी यह शहर मुगलों की राजधानी कही जाती थी। लेकिन बाद में बाबा साहेब आंबेडकर ने दलितों की राजधानी नाम दिया था। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के सत्यपाल सिंह बघेल ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे मनोज कुमार सोनी को 2,11,546 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में सत्यपाल सिंह बघेल को 6,46,875 और मनोज कुमार सोनी को 4,35,329 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के प्रीत हरित महज 45,149 वोट पा कर तीसरे नंबर पर रहे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के डॉ. राम शंकर कठेरिया ने बसपा के नारायण सिंह सुमन को 3,00,263 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में डॉ. राम शंकर कठेरिया को 5,83,716 और नारायण सिंह सुमन को 2,83,453 वोट मिले थे। जबकि सपा के महाराज सिंह धनगर को 1,34,708 और कांग्रेस के उपेन्द्र सिंह को 34,834 वोट मिले थे। वहीं आम आदमी पार्टी के रवीन्द्र सिंह को 7,804 वोट मिले थे।

यहां जानें भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सिंह बघेल के बारे में


भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सिंह बघेल का नाता सपा और बसपा दोनों से रहा है। वो तीन बार सपा के टिकट पर लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। वहीं बसपा भी उन्हें एक बार राज्यसभा भेज चुकी है। सत्यपाल सिंह बघेल इटावा जिले के भाटपुरा उमरी से ताल्लुक रखते हैं। गडरिया समुदाय से आने वाले सत्यपाल सिंह बघेल के पास कानून में स्नातक की डिग्री, विज्ञान में मास्टर डिग्री और डॉक्टरेट की उपाधि भी है। उन्होंने ग्वालियर की महाराजा जीवाजी राव यूनिवर्सिटी और मेरठ विश्वविद्यालय से डिग्री ली है। बता दें कि यूपी के जलेसर लोकसभा सीट से 1998, 1999 और 2004 में तीन बार सपा के टिकट पर सत्यपाल सिंह बघेल संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इन तीन कार्यकालों के बाद बघेल को उनकी पार्टी से निलंबित कर दिया गया था। तब बसपा का दामन थामने के बाद 2014 में बघेल पार्टी की तरफ से राज्यसभा के लिए चुने गए थे। फिर उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया और 2017 में टूंडला से विधायक चुने गए और यूपी सरकार में मंत्री बनें। इसके बाद भाजपा के टिकट पर ही उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव आगरा सीट से लड़ा और जीते। 2021 में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में राज्य मंत्री बनने का मौका भी मिला।

यहां जानें सपा उम्मीदवार सुरेश चंद कर्दम के बारे में


सपा उम्मीदवार सुरेश चंद कर्दम का ने जूतों का कारोबार है। सपा ने अनुसूचित वर्ग को लुभाने के लिए जाटव कार्ड खेला है। सुरेश चंद कर्दम 24 साल पहले 2000 में बसपा के टिकट पर आगरा नगर निगम के मेयर का चुनाव लड़ चुके हैं। तब वह कम अंतर से चुनाव हार गए थे। कारोबारी होने के कारण सुरेश किसी दल में पदाधिकारी नहीं रहे।

यहां जानें आगरा लोकसभा क्षेत्र के बारे में

आगरा लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 18 है।

यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।

इस लोकसभा क्षेत्र का गठन आगरा जिले के एतमादपुर, आगरा कैंट, आगरा दक्षिण व आगरा उत्तर और एटा जिले के जलेसर विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।

आगरा लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है।

यहां कुल 19,37,690 मतदाता हैं। जिनमें से 8,79,975 पुरुष और 10,57,617 महिला मतदाता हैं।

आगरा लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,45,629 यानी 59.12 प्रतिशत मतदान हुआ था।

आगरा लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

आगरा यूपी के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक है और भारत में 24वां आबादी वाला शहर है। यमुना नदी के तट पर बसा आगरा का जिक्र महाभारत काल में भी होता है। बाद में दिल्ली सल्तनत के मुस्लिम शासक सुल्तान सिकंदर लोदी ने साल 1504 में आगरा शहर की स्थापना की। सिकंदर के बाद उनके बेटे सुल्तान इब्राहिम लोदी सुल्तान बने और उन्होंने आगरा से यहां पर शासन किया। हालांकि 1526 में पानीपत की पहली जंग में मुगल बदशाह बाबर के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। मुगल राज के स्थापित होने के बाद आगरा शहर को शासकों से ढेर सारा प्यार मिला और यह शहर तेजी से तरक्की करता चला गया। एक समय इस शहर को अकबराबाद के रूप में जाना गया। आगरा मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर और शाहजहां के दौर में आगरा मुगल साम्राज्य की राजधानी बनी रहा। शाहजहां ने बाद में 1649 में अपनी राजधानी शाहजानाबाद में स्थानांतरित कर दी। शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में संगमरमर का खूबसूरत मकबरा बनवाया, जो 1653 में पूरा हुआ था। यह बाद में ताजमहल के नाम से मशहूर हुआ। शाहजहां ने आगरा को ताजमहल दिया तो मिर्जा गालिब, मीर-तकी-मीर, नजीर अकबराबादी सहित कई नामी शायर अपनी नज्मों से मुहब्बत घोलते रहे।

कांग्रेस के सेठ अचल सिंह रहे लगातार 5 बार सांसद

आगरा के पेठे की मिठास जितनी खास है, उतनी ही खास यहां से जीत की मिठास भी है। जातीय समीकरणों की चाशनी तैयार करके कांग्रेस, भाजपा, सपा, लोकदल सहित सभी बड़ी पार्टियां जीत का स्वाद चख चुकी हैं। लेकिन इकलौती बसपा ही है जो जीत के करीब जाकर इस स्वाद से वंचित रह जाती है। आजादी के बाद 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां पहली बार कांग्रेस के सेठ अचल सिंह चुनाव जीते। उसके बाद 1971 तक लगातार पांच बार न तो कांग्रेस ने अपना चेहरा बदला और न जनता ने अपना नुमाइंदा। वह नेहरू परिवार के करीबी थे। बताया जाता है कि जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू उनके परिवार के वकील हुआ करते थे। इतना रुतबा होने के बावजूद वह पैदल ही चलते थे और छोटी-छोटी नुक्कड़ बैठकें करते थे। उनकी यही सादगी लोग पसंद करते थे। उसके बाद पूरे देश की तरह इमरजेंसी के बाद यहां का मिजाज भी बदला।

कांग्रेस विरोधी लहर में भारतीय लोकदल के शम्भूनाथ चतुर्वेदी यहां से सांसद बने। 1980 में फिर कांग्रेस की वापसी हुई और निहाल सिंह सांसद बने। इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस लहर में वह दोबारा चुने गए। इसके बाद 1989 में यह सीट जनता दल के कब्जे में चली गई और अजय सिंह सांसद बने। देश में चल रहे राम मंदिर लहर के दौरान पहली बार 1991 में भाजपा का खाता खुला और 1996, 1998 तक लगातार तीन बार कमल खिला। तीनों बार भगवान शंकर रावत को जनता ने चुनकर दिल्ली भेजा। इसके बाद फिर हवा का रुख बदला और यह सीट सपा के खाते में चली गई। फिल्म स्टार राज बब्बर यहां से 1999 और 2004 में चुनाव जीते। आगरा सीट 2009 से भाजपा के कब्जे में है। यहां के मशहूर शायर मीर-तकी-मीर का एक शेर है-‘राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या’। यूं तो उन्होंने इसमें इश्क की राहों का जिक्र किया है। लेकिन चुनावी माहौल में सब यही जानना चाह रहे हैं कि इस बार आगरा किसको अपना दिल देगी?

बड़े मुद्दों पर काम का इंतज़ार

ताज नगरी आगरा के कई बड़े मुद्दे हैं जो हर बार चुनाव के दौरान उठते हैं, लेकिन उनके पूरे होने का इंतजार जनता को अब भी है। यहां पेठा, दालमोठ जैसे व्यवसाय की तरह चमड़े के जूते का कारोबार भी परंपरागत तौर पर होता आ रहा है। इसके अलावा बड़े स्तर पर औद्योगिक विकास की मांग लंबे समय से उठ रही है। ताजमहल पर्यटकों से रोजगार दे रहा है, लेकिन उसी की वजह से यहां औद्योगिक इकाइयां नहीं लगाई गईं। यहां अब यह मांग उठ रही है कि ताज क्षेत्र से हटकर अलग एक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जाए। अत्यधिक फ्लोराइड वाले खारे पानी की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ। इतना बड़ा पर्यटन स्थल होने की वजह से यहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की मांग उठ रही है। कई बार योजनाएं बनीं, जमीन चिह्नित की गई, लेकिन उस पर काम नहीं हुआ।

आगरा लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण

आगरा लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां मुस्लिम और दलित गठजोड़ बेहद निर्णायक है। यही मतदाता हार-जीत तय करेंगे। यहां करीब 3.15 लाख वैश्य, अनुसूचित जाति के 2.80 लाख मतदाता हैं। जबकि 2.70 लाख मुस्लिम मतदाता हैं।

आगरा लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से सेठ अचल सिंह 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से शम्भू नाथ चतुवेर्दी 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से निहाल सिंह 1980 और 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता दल से अजय सिंह 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से भगवान शंकर रावत 1991, 1996 और 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से राज बब्बर 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से राम शंकर कठेरिया 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से सत्यपाल सिंह बघेल 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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