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सीएम केजरीवाल जेल से चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं, क्या कहता है कानून?

Arvind Kejriwal: जेल में रहकर चुनाव लड़ने और मताधिकार के प्रयोग पर क्या कहता है कानून। आइए, विस्तार से समझते हैं।

Aniket Gupta
Published on: 26 April 2024 10:17 AM GMT
सीएम केजरीवाल जेल से चुनाव तो लड़ सकते हैं, लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं, क्या कहता है कानून?
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Arvind Kejriwal: आज देश की 88 सीटों पर लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान हो रहा है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शराब घोटाला मामले में तिहाड़ जेल में बंद हैं। फिलहाल केजरीवाल इस चुनाव में किस सीट से चुनाव लड़ेंगे या फिर लड़ेंगे भी या नहीं, ये स्पष्ट नहीं है, लेकिन ये जरूर पहले से तय है कि जेल में रहते उनके पास वोट देने का अधिकार नहीं है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के क्राइम इन इंडिया 2022 की रिपोर्ट के आधार पर देश में ऐसे 5 लाख से अधिक लोग हैं जो इस लोकसभा चुनाव में वोटिंग नहीं कर सकेंगे क्योंकि वे किसी न किसी मामले में जेल की सजा काट रहे हैं।

अब यहां सोचने वाली ये बात है कि जेल में रहते हुए जब किसी व्यक्ति को इलेक्शन लड़ने का अधिकार मिल सकता है, तो उसे वोटिंग का क्यों नहीं!

2013 में पहली बार सामने आया था मामला

आज से करीब डेढ़ दशक पहले पटना हाई कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया था, जिसमें जेल में बंद एक कैदी ने चुनाव लड़ने की मंशा जताई। अदालत ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जब कैदियों को वोट देने का हक नहीं है, तो चुनाव लड़ने जैसा अधिकार नहीं दिया जा सकता है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को मंजूरी दे दी। लेकिन बाद में तत्कालीन यूपीए सरकार ने कानून में बदलाव किया और जेल में बंद कैदियों को चुनाव लड़ने की इजाजत दिलाई। ये मामला साल 2013 का है। हालांकि, जेल में बंद कैदियों के पास वोटिंग राइट अब भी नहीं है।

कानून का उल्लंघन करने वाले को कानूनी अधिकार नहीं

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) के तहत किसी भी मामले में जेल की सजा काट रहे कोई भी व्यक्ति मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। फिर चाहे वो हिरासत में हो या जेल में सजा काट रहा हो। दरअसल, मताधिकार एक कानूनी अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है तो उसका मताधिकार अपने-आप निरस्त हो जाता है। कानून के अनुसार, दोषी के अलावा जिनपर ट्रायल चल रहा हो, वे भी मतदान नहीं कर सकते।

मताधिकार से वंचित रखने का इतिहास

बंदियों को मताधिकार से वंचित रखने के इतिहास पर नजर डालें तो यह अंग्रेजी जब्ती अधिनियम 1870 से दिखता है। इस दौरान राजद्रोह या गुंडागर्दी के दोषी लोगों को मतदान के लिए अयोग्य ठहराते हुए उनसे वोट का मताधिकार छीन लिया जाता था। इसके लिए दलीलें दी गई कि जो व्यक्ति इतना गंभीर अपराध कर रहा है, उसे किसी भी तरह का कोई वोटिंग राइट नहीं मिलना चाहिए।

प्रिवेंटिव डिटेंशन वालों को भी छूट

गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 में भी यही कानून लागू हो गया। इसके तहत कुछ खास तरह के अपराधों में जेल की सजा काट रहे लोगों को वोट देने से रोक दिया गया। हालांकि 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम ने इस कानून को नए सिरे से देखा। और इस प्रावधान में कुछ छूट दी गई। इस प्रावधान में उन्हें छूट दी गई जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हों। मतलब किसी भी वजह से सरकार को शक हो, इसके बाहर रहने से उपद्रव हो सकता है और इसे ही टालने के लिए उसे नजरबंद कर दिया गया हो, ऐसे लोग वोट डाल सकते हैं। इसके लिए पुलिस उसको सुरक्षा घेरे में पोलिंग बूथ तक ले जाएगी। या फिर उस व्यक्ति को औपचारिक तरीके से स्थानीय प्रशासन को यह जानकारी देनी होगी कि वो इतने समय पर इस बूथ पर वोटिंग के लिए जा रहा है ताकि उनपर नजर रखी जा सके।

2013 में प्रतिनिधित्व अधिनियम में किया गया संशोधन

कई बार कोर्ट में इस बात को लेकर बहस हुई कि अगर दोषियों या आरोपियों के पास वोटिंग का अधिकार नहीं है तो इलेक्शन लड़ने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए। लेकिन, अंत में यह माना गया कि कई बार ऐसा होता है कि लोग राजनैतिक लड़ाई की वजह से किसी को अंदर करवा देते हैं। ऐसे में जेल होने की वजह से एक काबिल शख्स चुनाव लड़ने से डिसक्वालिफाई हो जाएगा। ये सही नहीं है। यही तर्क के आधार पर साल 2013 में प्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 62(5) में संशोधन हुआ। इसमें जेल में रहते हुए इलेक्शन में दावेदारी की छूट मिल गई। वे चुनाव में कैंडिडेट हो सकते हैं, अपने लोगों के जरिए चुनावी प्रचार भी करवा सकते हैं, बस वोट नहीं दे सकते। आरोपमुक्त होने या सजा पूरी होने के बाद ही कोई कैदी मताधिकार का इस्तेमाल कर सकता है।

Aniket Gupta

Aniket Gupta

Senior Content Writer

Aniket has been associated with the journalism field for the last two years. Graduated from University of Allahabad. Currently working as Senior Content Writer in Newstrack. Aniket has also worked with Rajasthan Patrika. He Has Special interest in politics, education and local crime.

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