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चमत्कारी है नारायण कवच का क्या नित्य करते हैं पाठ, तो जान लीजिए इससे जुड़ी ये बात

Narayan Kavach in hindi : गुरूवार का दिन भगवान नारायण के सानिध्य पाने के लिए सबसे उत्तम होता है। इसदिन नारायण कवच का पाठ शुरू किया जाता है तो इसके अनगिनत लाभ मिलते है, जानते है..

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 4 May 2024 12:15 AM GMT (Updated on: 5 May 2024 2:32 AM GMT)
चमत्कारी है नारायण कवच का क्या नित्य करते हैं पाठ, तो जान लीजिए इससे जुड़ी ये बात
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Narayan Kavach: भगवान विष्णु की शरण में जो जाता है वो उसका उद्धार होता है। उनकी आराधना के लिए मंत्र पूजा के साथ गुरुवार का दिन खास होता है। और सबसे खास होता है नारायण कवच गुरुवार के दिन आपको नारायण कवच का पाठ करना चाहिए। आपके जीवन में यदि कोई संकट है, तो नारायण कवच का पाठ करने से दूर हो सकता है। नारायण कवच की मदद से ही इंद्र ने असुरों पर विजय प्राप्त की थी और स्वर्ग पर आए संकट को खत्म कर दिया था जानते हैं नारायण कवच के बारे में.

॥ श्री नारायण कवच अर्थ सहित॥

ॐ श्री विष्णवे नमः ॥

ॐ श्री विष्णवे नमः ॥

ॐ श्री विष्णवे नमः ॥

ॐ नमो नारायणाय ॥

ॐ नमो नारायणाय ॥

ॐ नमो नारायणाय ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां

न्यस्ताड़् घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे ।

दरारिचर्मासिगदेषुचापपाशान्

दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः ॥१॥

अर्थ: भगवान् श्रीहरि गरूड़जी के पीठ पर अपने चरणकमल रखे हुए हैं, अणिमा आदि आठों सिद्धियाँ उनकी सेवा कर रही हैं आठ हाँथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष, और पाश (फंदा) धारण किए हुए हैं वे ही ॐकार स्वरूप प्रभु सब प्रकार से सब ओर से मेरी रक्षा करें॥१॥

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो

वरूणस्य पाशात् ।

स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात्

त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः ॥२॥

अर्थ: मत्स्यमूर्ति भगवान् जल के भीतर जलजंतुओं से और वरूण के पाश से मेरी रक्षा करें माया से ब्रह्मचारी रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रमभगवान् आकाश में मेरी रक्षा करें ॥२॥

दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः

पायान्नृसिंहोऽसुरुयूथपारिः ।

विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं

दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥३॥

अर्थ: जिनके घोर अट्टहास करने पर सब दिशाएँ गूँज उठी थीं और गर्भवती दैत्यपत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्ययूथपतियों के शत्रु भगवान् नृसिंह किले, जंगल, रणभूमि आदि विकट स्थानों में मेरी रक्षा करें ॥३॥

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः

स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः ।

रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे

सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान् ॥४॥

अर्थ: अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को उठा लेने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान् मार्ग में, परशुराम जी पर्वतों के शिखरों और लक्ष्मणजी के सहित भरत के बड़े भाई भगावन् रामचंद्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें ॥४॥

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः

पातु नरश्च हासात् ।

दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद्

गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥५॥

अर्थ: भगवान् नारायण मारण – मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान् दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान् कपिल कर्मबन्धन से मेरी रक्षा करें ॥५॥

सनत्कुमारोऽवतु कामदेवाद्धयशीर्षा

मां पथि देवहेलनात् ।

देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात्

कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥६॥

अर्थ: परमर्षि सनत्कुमार कामदेव से, हयग्रीव भगवान् मार्ग में चलते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद सेवापराधों से और भगवान् कच्छप सब प्रकार के नरकों से मेरी रक्षा करें ॥६॥

धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद्

द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा ।

यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद्

बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ॥७॥

अर्थ: भगवान् धन्वन्तरि कुपथ्य से, जितेन्द्र भगवान् ऋषभदेव सुख-दुःख आदि भयदायक द्वन्द्वों से, यज्ञ भगवान् लोकापवाद से, बलरामजी मनुष्यकृत कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवशनामक सर्पों के गणों से मेरी रक्षा करें ॥७॥

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु

पाखण्डगणात् प्रमादात् ।

कल्किः कलेः कालमलात् प्रपातु

धर्मावनायोरूकृतावतारः ॥८॥

अर्थ: भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों से और प्रमाद से मेरी रक्षा करें धर्म-रक्षा करने वाले महान अवतार धारण करने वाले भगवान् कल्कि पाप-बहुल कलिकाल के दोषों से मेरी रक्षा करें ॥८॥

मां केशवो गदया प्रातरव्याद्

गोविन्द आसंगवमात्तवेणुः ।

नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने

विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥९॥

अर्थ: प्रातःकाल भगवान् केशव अपनी गदा लेकर, कुछ दिन चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर, दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर और दोपहर को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें ॥९॥

देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं

त्रिधामावतु माधवो माम् ।

दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ

एकोsवतु पद्मनाभः ॥१०॥

अर्थ: तीसरे पहर में भगवान् मधुसूदन अपना प्रचण्ड धनुष लेकर मेरी रक्षा करें सांयकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, सूर्यास्त के बाद हृषिकेश, अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्ध रात्रि के समय अकेले भगवान् पद्मनाभ मेरी रक्षा करें ॥१०॥

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष

ईशोऽसिधरो जनार्दनः ।

दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते

विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥११॥

अर्थ: रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलाञ्छन श्रीहरि, उषाकाल में खड्गधारी भगवान् जनार्दन, सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण सन्ध्याओं में कालमूर्ति भगवान् विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ॥११॥

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत्

समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम् ।

दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमाशु कक्षं

यथा वातसखो हुताशः ॥१२॥

अर्थ: सुदर्शन ! आपका आकार चक्र ( रथ के पहिये ) की तरह है आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान् की प्रेरणा से सब ओर घूमते रहते हैं जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र से शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये ॥१२॥

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि

निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि ।

कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय

चूर्णयारीन् ॥१३॥

अर्थ: कौमुद की गदा ! आपसे छूटने वाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है आप भगवान् अजित की प्रिया हैं और मैं उनका सेवक हूँ इसलिए आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये, कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर – चूर कर दीजिये ॥१३॥

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाच

विप्रग्रहघोरदृष्टीन् ।

दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो

भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ॥१४॥

अर्थ: शङ्खश्रेष्ठ ! आप भगवान् श्रीकृष्ण के फूँकने से भयंकर शब्द करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयावने प्राणियों को यहाँ से तुरन्त भगा दीजिये ॥१४॥

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो

मम छिन्धि छिन्धि ।

चक्षूंषि चर्मञ्छतचन्द्र छादय

द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥१५॥

अर्थ: भगवान् की श्रेष्ठ तलवार ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है आप भगवान् की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दीजिये। भगवान् की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं आप पापदृष्टि पापात्मा शत्रुओं की आँखे बन्द कर दीजिये और उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये ॥१५॥

यन्नो भयं ग्रहेभ्योऽभूत् केतुभ्यो

नृभ्य एव च ।

सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य

एव वा ॥१६॥

अर्थ: सूर्य आदि ग्रह, धूमकेतु (पुच्छल तारे ) आदि केतु, दुष्ट मनुष्य, सर्पादि रेंगने वाले जन्तु, दाढ़ोंवाले हिंसक पशु, भूत-प्रेत आदि तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हो और जो हमारे मङ्गल के विरोधी हों ॥१६॥

सर्वाण्येतानि

भगवन्नामरूपास्त्रकीर्तनात् ।

प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये

नः श्रेयः प्रतीपकाः ॥१७॥

अर्थ: वे सभी भगावान् के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायें ॥१७॥

गरूड़ो भगवान्

स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः ।

रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो

विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥१८॥

अर्थ: बृहद्, रथन्तर आदि सामवेदीय स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान् गरूड़ और विष्वक्सेनजी अपने नामोच्चारण के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से बचायें॥१८॥

सर्वापद्भ्यो

हरेर्नामरूपयानायुधानि नः ।

बुद्धीन्द्रियमनः प्राणान्

पान्तु पार्षदभूषणाः ॥१९॥

अर्थ: श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि , इन्द्रिय , मन और प्राणों को सब प्रकार की आपत्तियों से बचायें ॥१९॥

यथा हि भगवानेव

वस्तुतः सदसच्च यत् ।

सत्येनानेन नः सर्वे

यान्तु नाशमुपद्रवाः ॥२०॥

अर्थ: जितना भी कार्य अथवा कारण रूप जगत है, वह वास्तव में भगवान् ही है इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे उपद्रव नष्ट हो जायें ॥२०॥

यथैकात्म्यानुभावानां

विकल्परहितः स्वयम् ।

भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते

शक्तीः स्वमायया ॥२१॥

अर्थ: जो लोग ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में भगवान् का स्वरूप समस्त विकल्पों से रहित है-भेदों से रहित हैं फिर भी वे अपनी माया शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं ॥२१॥

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो

भगवान् हरिः ।

पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः

सदा सर्वत्र सर्वगः ॥२२॥

अर्थ: यह बात निश्चित रूप से सत्य है इस कारण सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान् श्रीहरि सदा -सर्वत्र सब स्वरूपों से हमारी रक्षा करें ॥२२॥

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः

समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः ।

प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन

स्वतेजसा ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥२३॥

अर्थ: जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को भगा देते हैं और अपने तेज से सबका तेज ग्रस लेते हैं, वे भगवान् नृसिंह दिशा -विदिशा में, नीचे -ऊपर, बाहर-भीतर – सब ओर से हमारी रक्षा करें ॥२३॥

श्री नारायण कवच पाठ के लाभ (Shri Narayan Kavach Path Ke Labh)

श्री नारायण कवच का पाठ करने से असफलता दूर होती है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से विपत्तियों से छुटकारा मिल जाता है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से वैष्णवी विद्या प्राप्त होती है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से मृत्यु के बाद पिशाच योनी नहीं मिलती है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति के सारे कार्य पूर्ण होते हैं।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से आध्यात्म में बढ़ोतरी होती है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से नकारात्मकता (नकारात्मक ऊर्जा हटाने के उपाय) दूर होती है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से बल और साहस का संचार होता है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति का विवेक जागता है।

श्री नारायण कवच का पाठ करने से व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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